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कुसुम मुंशी प्रेम चंद मैं सन्नाटे में आ गया। मेरे मुँह से अनायास निकल गया छि: ! वाह री दुनिया ! और वाह रे हिन्दू-समाज ! तेरे यहाँ ऐसे-ऐसे स्वार्थ के ...